प्लूटो कभी हमारे सौरमंडल का नवम ग्रह था। आज वह एक वामन ग्रह मात्र है। अंतराष्ट्रीय खगोलीय संघ ने 2006 में उसे ग्रहों की सूची से हटाकर वामन ग्रहों की सूची में रख दिया। वामन ग्रहों की सूची में दो अन्य पिंड सीरीस और एरिस है | सीरीस क्षुद्रग्रह पट्टिका में जबकि एरिस प्लूटो से भी परे स्थित है। सूर्य की रोशनी को प्लूटो तक पहुंचने में छह घंटे लग जाते है जबकि पृथ्वी तक यही रोशनी महज आठ मिनट में पहुँच जाती है। प्लूटो की दूरी का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। बड़ी कक्षा होने के कारण सूर्य की परिक्रमा के लिए भी प्लूटो को अधिक वर्ष लगते है, 248 पृथ्वी वर्ष। प्लूटो अपनी धूरी के इर्दगिर्द भी घूमता है। यह अपने अक्ष पर छह दिवसों में एक बार घूमता है। प्लूटो की कक्षा अंडाकार है। अपनी कक्षा पर भ्रमण करते हुए कभी यह नेप्चून की कक्षा को लांघ जाता है। तब नेप्चून की बजाय प्लूटो सूर्य के समीप होता है। हालांकि प्लूटो को यह सौभाग्य केवल बीस वर्षों के लिए मिलता है। 1979 से लेकर 1999 तक प्लूटो आठवां जबकि नेप्चून नौवां ग्रह था।
मान्यता
2006 से पूर्व प्लूटो एक ग्रह के रूप में वर्गीकृत था। अरसे तक यह मंगल व बुध जितना बड़ा ग्रह माना गया। पर 1970 में प्लूटो के सबसे बड़े चन्द्रमा शैरन की खोज ने इस धारणा को बदल दिया। खगोलविदों ने शैरन की परिक्रमा अवधि व प्लूटो से उसकी दूरी की गणना की। इस आधार पर प्लूटो व शैरन के संयुक्त द्रव्यमान का आकलन किया। उन्होंने पाया कि दोनों का साझा द्रव्यमान हमारे चन्द्रमा से भी कम है। प्लूटो का आकार समकालीन खोजे गए सौरमंडल के अन्य खगोलीय पिंडों के समकक्ष पाया गया। इस बात ने खगोलविदों को यह सोचने को मजबूर कर दिया कि आखिर प्लूटो है क्या ? कम से कम यह ग्रह तो नहीं है।
आख़िरकार प्लूटो से ग्रह का दर्जा क्यों छीन लिया गया ? यह कहानी भी बड़ी रोचक है। सन 2006 में सैंकड़ों खगोलविद प्लूटो पर चर्चा के लिए पैरुग्वे में जुटे। लम्बी जद्दोजहद के बाद ग्रहों को सिरे से परिभाषित किया गया। साथ ही साथ 'वामन ग्रह' के रूप में एक अतिरिक्त नए वर्ग को भी जोड़ा गया। ग्रहों और वामन ग्रहों के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए। प्लूटो ने ग्रह होने की आवश्यक दो शर्तों को तो पूरा किया पर अंतिम शर्त पर वह खरा नहीं उतर सका। अंतिम नियम के अनुसार ग्रह की कक्षा से लगा क्षेत्र साफ़ सुथरा होना चाहिए अर्थात् कक्षा के आसपास अन्य कोई भी खगोलीय पिंड मौजूद नहीं होना चाहिए। प्लूटो क्यूपर पट्टिका का सदस्य है जिसके आसपास बर्फीले खण्डों की भरमार है। नई परिभाषा के अनुसार प्लूटो ग्रह होने की पात्रता नहीं रखता था। आखिरकार प्लूटो को वामन ग्रह की श्रेणी में रख दिया गया।
प्लूटो |
मान्यता
2006 से पूर्व प्लूटो एक ग्रह के रूप में वर्गीकृत था। अरसे तक यह मंगल व बुध जितना बड़ा ग्रह माना गया। पर 1970 में प्लूटो के सबसे बड़े चन्द्रमा शैरन की खोज ने इस धारणा को बदल दिया। खगोलविदों ने शैरन की परिक्रमा अवधि व प्लूटो से उसकी दूरी की गणना की। इस आधार पर प्लूटो व शैरन के संयुक्त द्रव्यमान का आकलन किया। उन्होंने पाया कि दोनों का साझा द्रव्यमान हमारे चन्द्रमा से भी कम है। प्लूटो का आकार समकालीन खोजे गए सौरमंडल के अन्य खगोलीय पिंडों के समकक्ष पाया गया। इस बात ने खगोलविदों को यह सोचने को मजबूर कर दिया कि आखिर प्लूटो है क्या ? कम से कम यह ग्रह तो नहीं है।
आख़िरकार प्लूटो से ग्रह का दर्जा क्यों छीन लिया गया ? यह कहानी भी बड़ी रोचक है। सन 2006 में सैंकड़ों खगोलविद प्लूटो पर चर्चा के लिए पैरुग्वे में जुटे। लम्बी जद्दोजहद के बाद ग्रहों को सिरे से परिभाषित किया गया। साथ ही साथ 'वामन ग्रह' के रूप में एक अतिरिक्त नए वर्ग को भी जोड़ा गया। ग्रहों और वामन ग्रहों के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए। प्लूटो ने ग्रह होने की आवश्यक दो शर्तों को तो पूरा किया पर अंतिम शर्त पर वह खरा नहीं उतर सका। अंतिम नियम के अनुसार ग्रह की कक्षा से लगा क्षेत्र साफ़ सुथरा होना चाहिए अर्थात् कक्षा के आसपास अन्य कोई भी खगोलीय पिंड मौजूद नहीं होना चाहिए। प्लूटो क्यूपर पट्टिका का सदस्य है जिसके आसपास बर्फीले खण्डों की भरमार है। नई परिभाषा के अनुसार प्लूटो ग्रह होने की पात्रता नहीं रखता था। आखिरकार प्लूटो को वामन ग्रह की श्रेणी में रख दिया गया।
2006 में प्लूटो को ग्रहों की बिरादरी से बाहर कर दिया गया |
खोज
रात्रि आकाश में प्लूटो को देखना रेत के ढेर में सुई ढुंढने के समान है। प्लूटो बेहद छोटा पिंड है। यहाँ तक कि यह कई उपग्रहों, यथा आयो, गेनीमेड, कैलिस्टो, टाइटन, ट्रीटोन, चन्द्रमा से भी छोटा है। प्लूटो को केवल बड़ी शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से ही देखा जा सकता है। बड़ी दूरबीनों से भी यह महज तारों जैसा नजर आता है। इस बात में कोई शक नहीं कि प्लूटो को देखना दुष्कर कार्य है। तो फिर प्लूटो को आखिर किस तरह ढूंढा गया ? खोज का यह सफ़र बेहद रोचक रहा है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्लूटो को उसकी खोज से पहले ही जान लिया गया था। उसके अस्तित्व को खोज से पूर्व ही भांप लिया गया था। नेप्चून की अजीब गतिविधि ने इसके संकेत दे दिए थे। खगोलविद् पेर्सिवाल लॉवेल युरेनस और नेप्चून का अध्ययन कर रहे थे | उन्होंने पाया कि सातवें और आठवें ग्रह की हलचल कुछ अजीब है। उन्हें लगा हो ना हो कोई नौवां ग्रह है जो इन पर अपना असर डाल रहा है। फिर उन्होंने संभावना के आधार पर इस नए ग्रह को खोजने की कोशिश की | लॉवेल की मृत्युपरांत, युवा खगोलविद् क्लायड टॉमबैग ने इस खोज को जारी रखा। वें एरिजोना की लॉवेल वेधशाला में कार्य कर रहे थे। उन्होंने दूरबीन का मुख उस ओर मोड़ दिया जहां ग्रह के मिलने की सर्वाधिक संभावना थी। एक से दो सप्ताहों तक उन्होंने एक के बाद एक अनेको तस्वीरें ली। फिर इन तस्वीरों का आपस में मिलान किया। उन्होंने पाया कि सितारों के बीच कुछ तो है जो हलचल कर रहा है। अंततः उनकी नजर एक बिंदु पर पड़ी जो विस्थापित होता हुआ दिख रहा था। यह बिंदु ही नया ग्रह था। इस तरह 1930 में प्लूटो की ऐतिहासिक खोज हुई।
रात्रि आकाश में प्लूटो को देखना रेत के ढेर में सुई ढुंढने के समान है। प्लूटो बेहद छोटा पिंड है। यहाँ तक कि यह कई उपग्रहों, यथा आयो, गेनीमेड, कैलिस्टो, टाइटन, ट्रीटोन, चन्द्रमा से भी छोटा है। प्लूटो को केवल बड़ी शक्तिशाली दूरबीनों की मदद से ही देखा जा सकता है। बड़ी दूरबीनों से भी यह महज तारों जैसा नजर आता है। इस बात में कोई शक नहीं कि प्लूटो को देखना दुष्कर कार्य है। तो फिर प्लूटो को आखिर किस तरह ढूंढा गया ? खोज का यह सफ़र बेहद रोचक रहा है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि प्लूटो को उसकी खोज से पहले ही जान लिया गया था। उसके अस्तित्व को खोज से पूर्व ही भांप लिया गया था। नेप्चून की अजीब गतिविधि ने इसके संकेत दे दिए थे। खगोलविद् पेर्सिवाल लॉवेल युरेनस और नेप्चून का अध्ययन कर रहे थे | उन्होंने पाया कि सातवें और आठवें ग्रह की हलचल कुछ अजीब है। उन्हें लगा हो ना हो कोई नौवां ग्रह है जो इन पर अपना असर डाल रहा है। फिर उन्होंने संभावना के आधार पर इस नए ग्रह को खोजने की कोशिश की | लॉवेल की मृत्युपरांत, युवा खगोलविद् क्लायड टॉमबैग ने इस खोज को जारी रखा। वें एरिजोना की लॉवेल वेधशाला में कार्य कर रहे थे। उन्होंने दूरबीन का मुख उस ओर मोड़ दिया जहां ग्रह के मिलने की सर्वाधिक संभावना थी। एक से दो सप्ताहों तक उन्होंने एक के बाद एक अनेको तस्वीरें ली। फिर इन तस्वीरों का आपस में मिलान किया। उन्होंने पाया कि सितारों के बीच कुछ तो है जो हलचल कर रहा है। अंततः उनकी नजर एक बिंदु पर पड़ी जो विस्थापित होता हुआ दिख रहा था। यह बिंदु ही नया ग्रह था। इस तरह 1930 में प्लूटो की ऐतिहासिक खोज हुई।
प्लूटो के खोजकर्ता क्लायड टॉमबैग |
कक्षा
प्लूटो की कक्षा की मुख्य विशेषता उसकी कक्षा का आकार और क्रांतिवृत्त से उसका झुकाव है । सौरमंडल को शीर्ष से देखने पर आप सभी ग्रहों की कक्षाएं प्रायः प्रायः वृत्ताकार पायेंगे। लेकिन प्लूटो की कक्षा इनसे एकदम भिन्न है | प्लूटो की कक्षा अत्यधिक अण्डाकार है, इसलिए कभी यह सूर्य के बेहद निकट (30 AU), तो कभी बेहद दूर (39 AU) होता है | प्लूटो सूर्य की एक पूर्ण परिक्रमा 248 साल में करता हैं। प्लूटो की कक्षा नेपच्यून की तुलना में ज्यादा चपटी है। इस वजह से कभी-कभी यह नेप्च्यून की कक्षा के भीतर घूस जाती है | यही कारण है कि 20 वर्षो के लिए नेपच्यून की बजाय प्लूटो सूर्य के समीप होता है | पिछली बार यह अवधि 7 फरवरी 1979 से 11 फरवरी 1999 तक रही थी | पिछली परिक्रमा में यह स्थिति सन् 1700 में बनी थी | प्लूटो की झुकी हुई कक्षा उसे कुछ असामान्य गुण देती है | आमतौर पर सभी ग्रहों की कक्षाएं क्रांतिवृत्त तल के आसपास मौजूद है, जबकि प्लूटो की कक्षा अत्यधिक झुकाव लिए हुए है | इसका मतलब यह है कि प्लूटो शेष ग्रहों की तरह एक ही तल पर नहीं रहता है | इसके बजाय प्लूटो 17 डिग्री के कोण पर परिक्रमा करता है | प्लूटो की कक्षा का कुछ भाग क्रांतिवृत्त तल के ऊपर और कुछ भाग इसके नीचे है | क्रांतिवृत्त वह काल्पनिक तल है जिस पर पृथ्वी की कक्षा स्थित है। प्रायः सभी ग्रहों की कक्षाएं क्रांतिवृत्त के समीप है |
प्लूटो बेहद छोटा पिंड है। नेप्च्यून के असर से इसकी कक्षा बहुत हद तक अनिश्चित बनी रहती है | हालांकि खगोलविद प्लूटो स्थिति का पूर्वानुमान अतीत और भविष्य के कुछ लाख सालों के लिए तो कर सकते हैं, पर सुदूरवर्ती भविष्य में प्लूटो की सटीक स्थिति क्या होगी ? यह बता पाना असंभव है |
प्लूटो और नेप्च्यून के परिक्रमण कालों में परस्पर 3:2 का एक निश्चित गणितीय अनुपात है | इसका अर्थ है, नेप्च्यून सूर्य के तीन चक्कर और प्लूटो सूर्य के दो चक्कर समान अवधि में लगाते है | यह दौर हमेंसा समान स्थिति में ख़त्म होता है | इस वजह से प्लूटो और नेप्च्यून का आपस में कभी टकराव नहीं होगा | यह पूरी प्रक्रिया 500 वर्षों में पूर्ण होती है |
वायुमंडल
ग्रहों को घेरे हुए गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते है | प्लूटो पर वायुमंडल तो है, पर बेहद विरल है | नाइट्रोजन प्लूटो के वायुमंडल का मुख्य अवयव है। वायुमंडल में मीथेन और कार्बनडाई ऑक्साईड कुछ मात्र में पायी गयी है | नाइट्रोजन के गैसीय रूप को स्पेक्ट्रोस्कोपी से पहचानना बहुत मुश्किल है। इस वजह से प्लूटो की संरचना की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है | वैज्ञानिक भरोसा करते है कि नाइट्रोजन प्लूटो के वायुमंडल का मुख्य घटक है | सूर्य से दूरी प्लूटो के वायुमंडल को प्रभावित करती है | सूर्य से दूरी बदलते ही मौसम बदल जाता है | प्लूटो एक बर्फीला पिंड है | प्लूटो जब सूर्य के निकट आता है उसके सतह की बर्फ वाष्पीकृत हो जाती है। समूचा वातावरण तब गैसीय हो जाता है। इसके विपरीत सूर्य से दूर जाने पर वातावरण जम जाता है। जमीं हुई वायु प्लूटो की धरातल पर हिमपात के रूप में गिरती है | अब प्लूटो पर कोई वायुमंडल नहीं रह जाता है | 1989 में प्लूटो सूर्य के सर्वाधिक समीप था । तब उसकी अधिकांश सतह तप गयी थी। वातावरण अपने चरम पर पहुँच गया था | वैज्ञानिकों का अनुमान है कि प्लूटो का तापमान 2015 तक इसके दक्षिणी गोलार्ध में निरंतर बढ़ता रहेगा |
प्लूटो का द्रव्यमान उसकी अपनी कक्षा में मौजूद सामग्री का महज 0,07 गुना है | तुलना के लिए, पृथ्वी का द्रव्यमान उसकी कक्षा में मौजूद कुल मलबे का १५ लाख गुना है | चूँकि प्लूटो अपनी कक्षा की इस सामग्री का सफाया नहीं कर सका है, इसलिए उसे ग्रह नहीं माना गया है। प्लूटो एक वामन ग्रह के रूप में नामित है |
प्लूटो की झुकी हुई कक्षा लाल रंग में |
वायुमंडल
ग्रहों को घेरे हुए गैसीय आवरण को वायुमंडल कहते है | प्लूटो पर वायुमंडल तो है, पर बेहद विरल है | नाइट्रोजन प्लूटो के वायुमंडल का मुख्य अवयव है। वायुमंडल में मीथेन और कार्बनडाई ऑक्साईड कुछ मात्र में पायी गयी है | नाइट्रोजन के गैसीय रूप को स्पेक्ट्रोस्कोपी से पहचानना बहुत मुश्किल है। इस वजह से प्लूटो की संरचना की कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है | वैज्ञानिक भरोसा करते है कि नाइट्रोजन प्लूटो के वायुमंडल का मुख्य घटक है | सूर्य से दूरी प्लूटो के वायुमंडल को प्रभावित करती है | सूर्य से दूरी बदलते ही मौसम बदल जाता है | प्लूटो एक बर्फीला पिंड है | प्लूटो जब सूर्य के निकट आता है उसके सतह की बर्फ वाष्पीकृत हो जाती है। समूचा वातावरण तब गैसीय हो जाता है। इसके विपरीत सूर्य से दूर जाने पर वातावरण जम जाता है। जमीं हुई वायु प्लूटो की धरातल पर हिमपात के रूप में गिरती है | अब प्लूटो पर कोई वायुमंडल नहीं रह जाता है | 1989 में प्लूटो सूर्य के सर्वाधिक समीप था । तब उसकी अधिकांश सतह तप गयी थी। वातावरण अपने चरम पर पहुँच गया था | वैज्ञानिकों का अनुमान है कि प्लूटो का तापमान 2015 तक इसके दक्षिणी गोलार्ध में निरंतर बढ़ता रहेगा |
प्लूटो पर वातावरण की कलात्मक छवि |
उपग्रह
दिनों दिन अधिकाधिक शक्तिशाली दूरबीन का निर्माण हुआ | यहाँ तक कि एक बड़ी दूरबीन को अंतरिक्ष तक में स्थापित किया गया | ऐसी ही एक दूरबीन है: हबल अंतरिक्ष दूरदर्शी | हबल दूरबीन ने हमें 5 अरब किमी की दूरी से छोटी से छोटी वस्तु को स्पष्ट रूप से देखने में सक्षम बनाया है | नासा ने इस दूरबीन की सहायता से प्लूटो के कम से कम पांच उपग्रहों को खोजा है | जिनमे से तीन उपग्रह क्रमशः शैरन, निक्स और हाइड्रा है, तथा हाल ही में खोजे गए अन्य दो उपग्रहों को औपचारिक नाम P4 और P5 दिया गया है | खोजे गए चंद्रमाओं में P4 सबसे छोटा है, इसका अनुमानित व्यास 13 से 34 किमी है | इसकी तुलना में, प्लूटो के सबसे बड़े चन्द्रमा शैरन का व्यास 1,043 किमी, और निक्स व हाइड्रा का व्यास 32 से 113 किमी के परास में है | शैरन की खोज 1978 में संयुक्त राज्य अमेरिका नौसेना वेधशाला स्टेशन, एरिज़ोना में हुई थी | तब प्लूटो को ग्रह का दर्जा प्राप्त था | शुरू के दो चन्द्रमा,निक्स और हाइड्रा, हबल दूरबीन की मदद से 2006 तक खोज लिए गए थे | चौथा चाँद P4, हबल के साथ 2011 में खोजा गया था | P5 के बारे में फिलहाल कुछ ख़ास जानकारी उपलब्ध नहीं है |
हबल दूरदर्शी से ली गई छवि में प्लूटो अपने पांच चंद्रमाओं के साथ |