लाग्रेंज क्षेत्र

             
लाग्रेंज क्षेत्र


लाग्रेंज क्षेत्र अंतरिक्ष में ऐसे स्थान है, जहां गुरुत्वाकर्षण बल और एक पिंड की कक्षीय गति एक दूसरे को संतुलित करते हैं। इसकी खोज फ्रेंच गणितज्ञ लुइस लाग्रेंज ने 1772 में की थी। लाग्रेंज अपनी 'त्रि-पिंड समस्या' का गुरुत्वाकर्षण अध्ययन कर रहे थे। वें जानना चाहते थे कि कोई पिंड अपने से बड़े अन्य दो परिक्रमारत पिंडों की किस तरह परिक्रमा करता है ?

सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा तीनों परस्पर एक दूसरे को अपनी ओर खींचते है। इस रस्साकस्सी में इनके आसपास अंतरिक्ष में ऐसे क्षेत्र निर्मित होते है जहां इन तीनों का खिंचाव बराबर होता है। यदि किसी पिंड को इस क्षेत्र पर रख दे तो वह लुढ़ककर इनके केंद्र में चला जायेगा और वहीं फंसकर रह जायेगा। सूर्य-पृथ्वी प्रणाली में पांच लाग्रेंज क्षेत्र है। इन्हे क्रमशः L1, L2, L3, L4, और Lसे दर्शाया जाता है। इनमें से L1, L2, और  Lसूर्य और पृथ्वी के सीध में है। L4, और Lपृथ्वी की कक्षा पर सूर्य से 60के कोण पर क्रमशः दायें और बाएं स्थित है। इन क्षेत्रों को उन प्रणाली के साथ दर्शाया जाता है जिनके वें अधीन होते है। जैसे, सूर्य-पृथ्वी L2 लाग्रेंज क्षेत्र, पृथ्वी-चंद्रमा L1 लाग्रेंज क्षेत्र, सूर्य-बृहस्पति L3 लाग्रेंज क्षेत्र  इत्यादि।


सभी लाग्रेंज क्षेत्र सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के साथ-साथ घूमते है। इसलिए इन क्षेत्रों से सूर्य और पृथ्वी की स्थिति सदा एक सी बनी रहती है। लाग्रेंज क्षेत्रों का यह गुण अंतरिक्ष अंवेषण के लिए बड़ा फायदेमंद साबित हुआ है। एक बार अंतरिक्ष वेधशाला को इन क्षेत्रो में स्थापित कर दो। फिर बिना ईंधन खर्च किये सालों साल अंवेषण करते रहो। सूर्य-पृथ्वी L1 लाग्रेंज क्षेत्र सूर्य के अंवेषण के लिए सर्वोत्तम स्थान है क्योंकि यह सूर्य की तरफ मौजूद है। नासा ने सोहो नामक अंतरिक्ष यान को इसी क्षेत्र में स्थापित किया है। सोहो पर कभी सूर्यास्त नहीं होता। सन 2018 में जेम्स वेब अंतरिक्ष दूरदर्शी को पुरातन ब्रह्मांड के अद्ययन के लिए सूर्य-पृथ्वी L2 लाग्रेंज क्षेत्र में स्थापित किया जाना है।


सूर्य-पृथ्वी L2 लाग्रेंज क्षेत्र, जहां वेब दूरबीन को स्थापित किया जाना है। 


कभी कभी लाग्रेंज क्षेत्रों के जाल में खगोलीय पिंड फंस जाते है। वह उसी प्रणाली का फिर हिस्सा बनकर रह जाते है। फंस चुके ऐसे पिंडों के लिए ट्रोजन शब्द प्रयुक्त किया जाता है। ट्रोजन पिंड अक्सर क्षुद्रग्रह ही होते है। हमारे सौरमंडल में अनेकों ट्रोजन क्षुद्रग्रह पाये गये है।


सूर्य-बृहस्पति प्रणाली में, L4 L5, दो ट्रोजन क्षुद्रग्रह कुंड