हिप्पारकस |
सर्वप्रथम हिप्पारकस ( 150 इपू ) के मन में तारों के लिए आभासी परिमाण का एक पैमाना बनाने का विचार आया था । जिन तारों को वें देख सके थे उसकी चमक का वर्णन करने के लिए उन्होंने एक पैमाने का आविष्कार किया । उन्होंने स्वयं के द्वारा परखे गए आकाश के सबसे चमकीले व धुंधले तारों के लिए क्रमशः 1 और 6 परिमाण नियत किये । हिप्पारकस ने अपनी प्रणाली में सूरज, चाँद, या ग्रहों को शामिल नहीं किया था ।
खगोलविद आज जो परिमाण स्केल इस्तेमाल करते है वह हिप्पारकस प्रणाली पर आधारित है। दूरबीन के आविष्कार के बाद से इसे विस्तारित किया गया है। इस प्रणाली में वस्तु जितनी ज्यादा उज्जवल दिखाई देती है उसका परिमाण उतना ही कम होता है । सूर्य और ग्रहों सहित आकाश में दिखने वाली कुछ सबसे चमकदार वस्तुओं के लिए आभासी परिमाण का मान नकारात्मक है । जबकि हबल दूरबीन के साथ पायी गई सबसे धुंधली वस्तुओं के परिमाण 30 है ।
परिमाण और तीव्रता के बीच संबंध
खगोलविद
परिमाण और तीव्रता के बीच अदला-बदली के लिए एक सरल तरीकें का प्रयोग करते
है । यदि दो तारों की तीव्रताएं IA और IB है, तो उनकी तीव्रता का अनुपात IA
/IB होगा । आधुनिक खगोलविदों ने परिमाण स्केल को इस तरह से परिभाषित किया
है, यदि दो तारों के बीच परिमाणों का अंतर 5 है तो उनके तीव्रताओं का
अनुपात ठीक 100 होगा । इस तरह तारों के बीच परिमाण का अंतर 1 होने पर उनके
तीव्रता का अनुपात 100 के 5 वें वर्गमूल के बराबर होना चाहिए, अर्थात
5√100 , जो कि 2.512 के बराबर है, यानि एक तारे की रोशनी 2.512 गुना
अधिक तीव्र होनी चाहिए । तारों के बीच परिमाण का अंतर 2 होने पर तीव्रता
का अनुपात 2.512 x 2.512 , या लगभग 6.3 होगा , और आगे इसी तरह
से........ | तारे द्वारा परिमाण के अगले पायदान पर कदम रखते ही चमक की
तीव्रता 2.512 गुना हो जाती है । इसे नीचे दी गई सारणी से समझा जा सकता है
-
- परिमाण - तीव्रता अनुपात
- 0 - 1
- 1 - 2.5
- 2 - 6.3
- 3 - 16
- 4 - 40
- 5 - 100
- 6 - 250
- 7 - 630
- 8 - 1600
- 9 - 4000
- 10 - 10000
- सूर्य -26.7
- पूर्ण चंद्रमा -12.6
- शुक्र ग्रह -4.4
- मंगल ग्रह -3.0
- सीरियस तारा -1.6
- यूरेनस ग्रह +5.5
- प्लूटो वामन ग्रह +13.7