बोडे का नियम

बोडे का नियम एक आनुभविक नियम है जो ग्रहों की सूर्य से अनुमानित दूरी बताता है | अक्सर ग्रहों को एक सीध में परस्पर समान दूरी पर दर्शाया जाता है। पर वास्तव में सूर्य से दूरी के साथ ग्रहों की कक्षाओं के बीच की दूरी में वृद्धि होती है |

सन् 1766 में जर्मन खगोलशास्त्री जोहान डैनियल टिटियस ने गौर किया कि ग्रहों की कक्षाओं के अर्ध मुख्य अक्ष एक साधारण संख्यात्मक नियम का पालन करते है। छह साल बाद, बर्लिन वेधशाला के निदेशक जोहान एलर्ट बोडे ने टिटियस के उल्लेख के बिना ही सूत्र प्रकाशित कर दिया। यह नियम बोडे के नियम के रूप में जाना जाता है। तथापि, इसकी पहचान टिटियस के खोज द्वारा हुई थी इस वजह से अब इसे टिटियस-बोडे का नियम कहा जाता है |

हम संख्यात्मक श्रृंखला 0, 3, 6, 12, 24, 48, 96,......... के साथ शुरू करते हैं। प्रथम दो संख्याओं के अलावा सभी संख्याओं का मूल्य पिछली संख्या से दोगुना है | प्रत्येक संख्या में 4 जोड़ने पर हमें श्रृंखला 4, 7, 10, 16,....... प्राप्त होती है। अंत में इन्हें हम 10 से विभाजित करते है। परिणाम ग्रहों के अर्ध मुख्य अक्ष है जो खगोलीय इकाइयों में व्यक्त है। साथ ही यह हमें मंगल और बृहस्पति के बीच एक लापता ग्रह के बारे में भी बताता है |




टिटियस ने जब इस नियम को तैयार किया तब मात्र छह ग्रह ज्ञात थे। बुध, शुक्र, पृथ्वी,मंगल, बृहस्पति और शनि। सभी ग्रहों की कक्षाएं इस नियम के अनुरूप पायी गयी थी। सिवाय 2.8 AU अंक के जो मंगल व बृहस्पति की कक्षाओं के बीच किसी गुमनाम ग्रह की ओर इशारा करता था। सन् 1801 में क्षुद्रग्रह सीरीस की खोज ने इस रिक्त स्थान को भर दिया। सातवें ग्रह युरेनस (खोज 1781) की कक्षा भी इसी नियम के अनुरूप पायी गयी। लेकिन आठवें ग्रह नेप्च्यून (1846) की दूरी की गणना करने में यह नियम विफल रहा। तपश्चात प्लूटो (1930) ने भी इस नियम को नहीं माना।